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बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

जानिए तारों की अनोखी दुनिया के बारे में -Learn about the unique world of the stars -

 Rahiskhan     ध्रुव तारा, रोचक जानकारी, विचित्र दुनिया   

आकाश में सूरज, चाँद और तारों की दुनिया बहुत अनोखी है। आपने घर की छत पर जाकर चाँद और तारों को खुशी और आश्चर्य से कभी न कभी जरुर निहारा होगा। गांवों में तो आकाश में जड़े प्रतीत होने वाले तारों को देखने में और भी अधिक आनंद आता है, क्योंकि शहरों की अपेक्षा गांवों में बिजली की रोशनी की चकाचौंध कम होती है और वातावरण भी स्वच्छ एवं शांत होता है। तारों को निहारते-निहारते और उनकी अधिक संख्या को देखकर आप जरुर आश्चर्यचकित हो जाते होंगे। इस बात की पूरी सम्भावना है कि आपनें शहर में कभी भी ऐसा सुंदर दृश्य न देखा होगा!
जानिए तारों की अनोखी दुनिया के बारे में -Learn about the unique world of the stars -

तारों को रोज देखने से आपके मन में कई सवाल उठतें होंगे कि आकाश के ये तारे हमसे कितनी दूर हैं? ये हमेशा चमकते क्यों दिखाई देते हैं? ये कब तक चमकते रहेंगे? क्या इन तारों का जन्म भी होता है? क्या इनकी मृत्यु भी होती है? आकाश में कुल कितनें तारे हैं? क्या हमारा सूर्य भी एक तारा है? यदि हमारा सूर्य भी एक तारा है, तो इन असंख्य तारों की दुनिया में इसका क्या स्थान है? कहाँ हमारा सूर्य बहुत चमकीला है तो कहाँ तारे अपेक्षाकृत मंद दिखाई पड़ते हैं इसके पीछे क्या कारण हैं? मोतियों से जड़े इस गोले (आकाश) के बावजूद अंधेरा क्यों होता है? क्यों तारे टिमटिमाते नजर आते हैं? और कुछ तारे क्यों नही टिमटिमाते दिखाई देते हैं? आदि अनेक प्रश्न आपके जिज्ञासु दिमाग में जरुर उठते होंगे।
क्या आप जानतें हैं कि प्राचीनकाल से ही मानव तारों से संबंधित उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर पाने का प्रयास करता रहा है? इसी का परिणाम है कि आज हमारे पास इन प्रश्नों के सटीक उत्तर उपलब्ध हैं। हम इस आलेख में विस्तार से तारों की इस दुनिया के बारे में चर्चा करेंगें।
कितने दूर हैं तारे?
सूर्य के समीप के तारे
रात के समय आकाश को देखने पर हमें यही प्रतीत होता हैं कि सभी तारे किसी विशाल गोले पर बिखरे हुए हैं और साथ ही साथ हमें यह भी लगता है कि सभी तारे हमसे एकसमान दूरी पर स्थित हैं। इस गोले को प्राचीन भारतीय खगोल-विज्ञानियों तथा यूनानी ज्योतिषियों ने ‘नक्षत्र-लोक’ नाम दिया था। इसी अनुमान के आधार पर अमीर खुसरो ने इस पहेली की भी रचना की थी -‘एक थाल मोती भरा, सबके सिर पर औंधा पड़ा!’ इस पहेली को आप और हम कई बार हल कर चुकें हैं। आज हम जानते हैं कि उनका यह अनुमान सही नहीं था, क्योंकि न तो सभी तारे एकसमान दूरी पर स्थित हैं और न ही कोई ऐसा गोल है जिस पर ये टिके हुए हैं।
हाँ, कुछ तारे हमसे बहुत दूर हैं तो कुछ तारे हमसे बहुत नजदीक। पृथ्वी से तारों  की दूरियाँ इतनी अधिक होती हैं कि हम उसे किलोमीटर या अन्य सामान्य इकाइयों  में व्यक्त नही कर सकते हैं इसलिए हमें एक विशेष पैमाना निर्धारित करना पड़ा जिसे वैज्ञानिक प्रकाश वर्ष कहतें हैं। दरअसल बात यह है कि प्रकाश की किरणें एक सेकेंड में लगभग तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। इस वेग से प्रकाश-किरणें एक वर्ष में जितनी दूरी तय करती हैं, उसे एक प्रकाश वर्ष कहते हैं। इसलिए एक प्रकाश वर्ष 94 खरब, 60 अरब, 52 करोड़, 84 लाख, 5 हजार किलोमीटर के बराबर होता है।
सूर्य के बाद हमसे सर्वाधिक नजदीकी तारा प्रौक्सिमा-सेंटौरी हैं, जिसकी दूरी लगभग 4.3 प्रकाश वर्ष है। प्रकाश वर्ष हमें समय और दूरी दोनों की सूचना देता है, हम यह भी कह सकते हैं कि प्रौक्सिमा-सेंटौरी से प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 4.3 प्रकाश वर्ष लगेंगे। आकाश का सबसे चमकीला तारा लुब्धक या व्याध हमसे तकरीबन 9 प्रकाश वर्ष दूर है। तारों  की दूरियां मापने के लिये एक और पैमाने का इस्तेमाल होता है, जिसे पारसेक कहते हैं। एक पारसेक 3.26 प्रकाश-वर्षों के बराबर है।
सूर्य हमसे लगभग 8 मिनट और 18 प्रकाश सेकेंड दूर है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की इस दूरी को ‘खगोलीय इकाई’ या ‘खगोलीय एकक’ कहते हैं। हमारी दृष्टि में सूर्य अन्य तारों की तुलना में अधिक बड़ा तथा प्रकाशमान प्रतीत होता है, परन्तु विशाल ब्रह्मांड की दृष्टि में यह महासागर के एक बूंद के बराबर भी नही है। इसलिए हमारा सूर्य आकाश का एक सामान्य तारा है। वास्तविकता तो यह है कि अन्य तारों की अपेक्षा सूर्य पृथ्वी के अधिक नजदीक है इसलिए हमें यह अधिक प्रकाशमान तथा शक्तिशाली प्रतीत होता है।
तारों के रंग एवं तापमान
तारों का तापमान तथा रंग
क्या आप जानते हैं कि सभी तारे एक ही रंग के नहीं होते? पृथ्वी से देखने पर हमे ज्यादातर तारे एक ही जैसे दिखाई देते हैं। मगर, जब हम तारों को दूरबीन से देखतें हैं तो यह साफ हो जाता है कि उनके रंग अलग-अलग हैं। क्या आपको मालूम है कि रंगों से हमें तारों के तापमान के बारे में भी पता चलता है। तथा अलग-अलग तापमान होने के ही कारण दूरबीन से देखने पर तारे अलग-अलग रंग के दिखाई देते हैं। जब किसी लोहे की छड़ी को हम आग में गर्म करते हैं तो ताप और रंग के बीच
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