Low of Attraction (आकर्षण का सिद्धांत) की बात करते हैं. पॉजिटिव सोच और एहसानमंद रहना. इसके मुताबिक आप अपने दिमाग में जो सोचते हैं और जिन चीजों की छवियाँ रखते हैं, वो ही चीज़े आपके साथ घटित होती हैं. आप जिस चीज़ को चाहते हैं उसको पा सकते है. वैसे इस चीज़ को मैं भी मानता हूँ. इसलिए नहीं की मैंने इसे फिल्म में देखा हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे अब तक के जीवन में मैंने हर पल इसे महसूस किया हैं. लेकिन विज्ञान इसके बारे में क्या कहता हैं? तो आइये जानते हैं इस आकर्षण के सिद्धांत के पीछे का विज्ञान. Science of The Law of Attraction in Hindi-
अध्यात्मवादीयों का एक पुराना विचार हैं की आप अपने जीवन को जिस तरह देखेंगे और महसूस करेंगे उसका आउटपुट भी बिलकुल वैसा ही होंगा. मतलब की जैसा सोचेंगे वैसा ही पाएंगे. गहरे ध्यान(Meditation) के माध्यम से, इन प्राचीन अन्वेषकोंने खोज निकाला की कैसे आपकी अन्दर की परिस्थितियां (दिमाग के विचार) आपकी बाहरी परिस्थितियों (आपके द्वारा किए जानेवाले कार्य) को प्रतिबिंबित करती हैं. अगर आपने The Secret फिल्म देखि हो तो आप जानते होंगे की आकर्षण का सिद्धांत एक वैज्ञानिक सिद्धांत हैं. यह सिद्धांत क्वांटम भौतिकी की ओर इशारा करता हैं.
हाल ही में हो रहे मस्तिष्क के इमेजिंग अध्ययन यह दिखा रहे हैं की हमारा दिमाग आकर्षण के सिद्धांत के अनुरूप ही कार्य करता हैं. इसके लिए आज तक का सबसे ठोस सबूत हैं “mirror neurons(मिरर न्यूरॉन्स)”. अर्थात्, जब हम किसी व्यक्ति को उसके किसी कार्य करने के दौरान उसका निरीक्षण करते हैं, तब मस्तिष्क सक्रियण का वो ही पैटर्न उस व्यक्ति को ऐसा करने की अनुमति देता है. वह व्यक्ति अभी जो भी कर रहा हैं उसका प्रतिबिम्ब उसके मस्तिष्क में भी नजर आता है. वह बिलकुल वैसी ही छवियाँ होंगी जो पर्यवेक्षक अभी कर रहा हैं. सक्रियण मस्तिष्क के premotor cortex और parietal cortex में देखा जा सकता हैं. आपका शरीर वोही करता हैं जो आपके दिमाग में होता हैं. आप प्लेसिबो असर के बारे में तो जानते ही होंगे. आपके बीमार होने के बावजूद आपका यह सोचना की आप एकदम ठीक हैं, आपकी बीमारी दूर कर सकता हैं.
उस पल के बारे में सोचिए जब आप किसी हाई स्पीड कार चसिंग द्रश्य को देखते हैं. आपको यह देखना कितना अच्छा लगता हैं. आप रोमांचित हो जाते हैं. आप शायद नहीं जानते होंगे, लेकिन उस द्रश्य को देखने के दौरान आपका दिमाग उस द्रश्य के एकदम अनुरूप सिम्युलेशन बनाता हैं, और आप को ऐसा लगता हैं की आप खुद वहीँ चीज़े कर रहे हैं. कई बार तो आप किसी इंटेंस द्रश्य को देखने पर कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया कर देते हैं और द्रश्य के मुताबिक अपने हाथ-पैर हिलाने लगते हैं. इन सभी विचारों के लिए एक अंतर्निहित कनेक्शन की धारणा है – हम सब एकदूसरे अन्दर से और बाहर से जुड़े हुए हैं.
हम आगे देख चुके हैं की कैसे अवलोकन वास्तविकता को प्रभावित करता हैं. आप जिस तरह पदार्थ और ऊर्जा का निरीक्षण करते हैं, उसी तरह उनके व्यव्हार में परिवर्तन होता हैं. भले ही उसमे आपको कोई फरक न दिखे लेकिन क्वांटम लेवल पर उसमे परिवर्तन होता हैं. क्वांटम भौतिकी का डबल छेदोंवाला प्रयोग इसका सबसे अच्छा उदहारण हैं.
blue stringsहमने आगे हमारी पोस्ट ब्रह्माण्ड और भगवान का सही ज्ञान में यह देखा की ब्रह्माण्ड में सभी चीज़े कंपित हो रही हैं. विज्ञान ने भी अभी अभी यह रियलाइज किया हैं की, ब्रह्माण्ड की हर एक बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज़ के अन्दर उर्जा की छोटी सी स्ट्रिंग्स होती हैं, जो लहर के स्वरुप में लडखडाती हुई अलग अलग पैटर्न में कंपित होती हैं. उर्जा की यही स्ट्रिंग्स न्यूक्लियस के प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को बनाती हैं. (वैज्ञानिकों ने इसके एक टुकड़े को क्वार्क नाम दिया. यह स्ट्रिंग्स दो आकर की होती हैं, ‘U’ आकार की और सीधी रेखा के आकर की. ‘U’ आकर की स्ट्रिंग से सजीवों के कोष बनते हैं.) जब आपके दिमाग में विचार प्रकट होता हैं तब सीधी रेखा के आकार की स्ट्रिंग उनके बिच के आकर्षण(Electro Magnetic Field) की वजह से खुद को कई बार मोड़ देती हैं और ‘U’ आकार की बन जाती हैं. जब आपका विचार ज्यादा पावरफुल और सकारात्मक होता हैं तो उसकी स्ट्रिंग्स के बिच का आकर्षण भी ज्यादा पावरफुल होंगा, जिससे उसके अनुरूप ज्यादा स्ट्रिंग्स आकर्षित होंगी और भौतिकता पैदा करेंगी. मतलब की आपके दिमाग से निकला विचार बाहर निकल कर उसको भौतिक स्वरूप देने के लिए सक्षम हैं. आपका विचार एक ऐसा बल हैं जो क्वांटम लेवल पर उसके अनुरूप परिस्थितियों को आकर्षित कर सकता हैं. जो हम कई बार हमारे रोज के जीवन में अनुभव करते हैं.
आपके शरीर के अन्दर की यह स्ट्रिंग्स कम्पित होती हैं. मतलब की आप इस वक़्त कम्पित हो रहे हैं. आपके विचार जिस फ्रीक्वन्सी पर कम्पित होते हैं उसी फ्रीक्वन्सी पर आपका शरीर कम्पित होता हैं. मतलब की पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही कम्पन मौजूद हैं, लेकिन अलग अलग फ्रीक्वन्सी पर. आकर्षण के सिद्धांत के मुताबिक यह बात आप पर निर्भर करती हैं की आप कौन से फ्रीक्वन्सी पर वाइब्रेट हो रहे हैं. आप किस विषय के लिए वाइब्रेट हो रहे हैं? ब्रह्माण्ड हिंदी या अंग्रजी भाषा नहीं समजता हैं. वह केवल कंपन की भाषा समजता हैं. अगर आप हताशा की भावना के साथ कहते हैं की “मुझे बहुत सारे पैसे चाहिए?” ब्रह्माण्ड में यह सन्देश कुछ इस तरह से जाएंगा, “मुझे हताश होने के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए.” और इसका परिणाम बहुत ही बुरा होंगा. तो अपने पैसे ख़ुशी के साथ मांगीए. पूरे ब्रह्माण्ड का अस्तित्व आपसे ही हैं. अगर आप यह प्रश्न करते हैं की ब्रह्माण्ड का अस्तित्व क्यों हैं, इसके लिए जरुरी हैं उसका अस्तित्व परिभाषित करने के लिए किसी प्रेक्षक का अस्तित्व होना. किसी चेतन वस्तु के बिना तो उसके होते हुए भी उसका कोई वजूद नहीं होंगा. चेतना और ब्रह्माण्ड मौलिक रूप से परस्पर हैं. यह दोनों एक साथ न हो तो आप दोनों में से किसी एक को नहीं समज सकते हैं. एक प्रेक्षक ही ब्रह्माण्ड का सर्जन करता हैं. आपकी चेतना ही आपके द्वारा किए गए कार्य के माध्यम से बाहर की दुनिया को प्रभावित करती हैं.
ज्यादा पावरफुल और सकारात्मक विचार ज्यादा बड़ा आकर्षण का क्षेत्र पैदा करते हैं. इस क्षेत्र या बल को आप अपने दिल में महसूस करत सकते हैं. सोचिए जब आप ज्यादा इमोशनल होते हैं या किसी को बहुत ही ज्यादा याद कर के रोते हैं तो आप वह दर्द दिल में महसूस करते हैं. मतलब की हमारा दिल उससे कई ज्यादा रहस्यमयी हैं, जितना हम उसे जानते हैं. महसूस होनेवाली वह फीलिंग या क्षेत्र इतना पावरफुल हैं जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते. केवल आप ही उसके अन्दर के बल, इच्छाओ और फ्रीक्वन्सीओं को महसूस कर सकते हैं. हम माने या ना माने लेकिन हमारा दिल हमारे दिमाग से जुडा हुआ हैं. शायद इसीलिए क्रिस्टोफ़र नोलन ने अपनी फिल्म INTERSTELLAR में LOVE(प्रेम) को सबसे ज्यादा पावरफुल बल दिखाया हैं.
लेकिन, यह सब तो हुई साइंस फ्रिक्शन की बातें. एक सीधी बात तो यह हैं की अगर आप किसी कार्य करते वक़्त नकारात्मक होंगे तो कार्य में सफल नहीं हो पाएंगे, क्योंकि आप अपना पूरा कंसंट्रेशन उसमे नहीं लगा पाएंगे. The Law of Attraction भी यहीं कहता हैं, हमेशां सकारात्मक रहिये. नकारात्मक विचार आपको कमजोर करता हैं इस बात को प्रूव करने की जरुरत नहीं हैं. हम हमेशा यह महसूस करते हैं. विज्ञान इसे सच साबित कर पाए या ना कर पाए, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है की इससे कभी कोई नुकसान नहीं हो सकता हैं. बल्कि इससे दुनिया में सकारात्मकता, प्यार और भाईचारा ही बढ़ता हैं.
अध्यात्मवादीयों का एक पुराना विचार हैं की आप अपने जीवन को जिस तरह देखेंगे और महसूस करेंगे उसका आउटपुट भी बिलकुल वैसा ही होंगा. मतलब की जैसा सोचेंगे वैसा ही पाएंगे. गहरे ध्यान(Meditation) के माध्यम से, इन प्राचीन अन्वेषकोंने खोज निकाला की कैसे आपकी अन्दर की परिस्थितियां (दिमाग के विचार) आपकी बाहरी परिस्थितियों (आपके द्वारा किए जानेवाले कार्य) को प्रतिबिंबित करती हैं. अगर आपने The Secret फिल्म देखि हो तो आप जानते होंगे की आकर्षण का सिद्धांत एक वैज्ञानिक सिद्धांत हैं. यह सिद्धांत क्वांटम भौतिकी की ओर इशारा करता हैं.
हाल ही में हो रहे मस्तिष्क के इमेजिंग अध्ययन यह दिखा रहे हैं की हमारा दिमाग आकर्षण के सिद्धांत के अनुरूप ही कार्य करता हैं. इसके लिए आज तक का सबसे ठोस सबूत हैं “mirror neurons(मिरर न्यूरॉन्स)”. अर्थात्, जब हम किसी व्यक्ति को उसके किसी कार्य करने के दौरान उसका निरीक्षण करते हैं, तब मस्तिष्क सक्रियण का वो ही पैटर्न उस व्यक्ति को ऐसा करने की अनुमति देता है. वह व्यक्ति अभी जो भी कर रहा हैं उसका प्रतिबिम्ब उसके मस्तिष्क में भी नजर आता है. वह बिलकुल वैसी ही छवियाँ होंगी जो पर्यवेक्षक अभी कर रहा हैं. सक्रियण मस्तिष्क के premotor cortex और parietal cortex में देखा जा सकता हैं. आपका शरीर वोही करता हैं जो आपके दिमाग में होता हैं. आप प्लेसिबो असर के बारे में तो जानते ही होंगे. आपके बीमार होने के बावजूद आपका यह सोचना की आप एकदम ठीक हैं, आपकी बीमारी दूर कर सकता हैं.
उस पल के बारे में सोचिए जब आप किसी हाई स्पीड कार चसिंग द्रश्य को देखते हैं. आपको यह देखना कितना अच्छा लगता हैं. आप रोमांचित हो जाते हैं. आप शायद नहीं जानते होंगे, लेकिन उस द्रश्य को देखने के दौरान आपका दिमाग उस द्रश्य के एकदम अनुरूप सिम्युलेशन बनाता हैं, और आप को ऐसा लगता हैं की आप खुद वहीँ चीज़े कर रहे हैं. कई बार तो आप किसी इंटेंस द्रश्य को देखने पर कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया कर देते हैं और द्रश्य के मुताबिक अपने हाथ-पैर हिलाने लगते हैं. इन सभी विचारों के लिए एक अंतर्निहित कनेक्शन की धारणा है – हम सब एकदूसरे अन्दर से और बाहर से जुड़े हुए हैं.
हम आगे देख चुके हैं की कैसे अवलोकन वास्तविकता को प्रभावित करता हैं. आप जिस तरह पदार्थ और ऊर्जा का निरीक्षण करते हैं, उसी तरह उनके व्यव्हार में परिवर्तन होता हैं. भले ही उसमे आपको कोई फरक न दिखे लेकिन क्वांटम लेवल पर उसमे परिवर्तन होता हैं. क्वांटम भौतिकी का डबल छेदोंवाला प्रयोग इसका सबसे अच्छा उदहारण हैं.
blue stringsहमने आगे हमारी पोस्ट ब्रह्माण्ड और भगवान का सही ज्ञान में यह देखा की ब्रह्माण्ड में सभी चीज़े कंपित हो रही हैं. विज्ञान ने भी अभी अभी यह रियलाइज किया हैं की, ब्रह्माण्ड की हर एक बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी चीज़ के अन्दर उर्जा की छोटी सी स्ट्रिंग्स होती हैं, जो लहर के स्वरुप में लडखडाती हुई अलग अलग पैटर्न में कंपित होती हैं. उर्जा की यही स्ट्रिंग्स न्यूक्लियस के प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को बनाती हैं. (वैज्ञानिकों ने इसके एक टुकड़े को क्वार्क नाम दिया. यह स्ट्रिंग्स दो आकर की होती हैं, ‘U’ आकार की और सीधी रेखा के आकर की. ‘U’ आकर की स्ट्रिंग से सजीवों के कोष बनते हैं.) जब आपके दिमाग में विचार प्रकट होता हैं तब सीधी रेखा के आकार की स्ट्रिंग उनके बिच के आकर्षण(Electro Magnetic Field) की वजह से खुद को कई बार मोड़ देती हैं और ‘U’ आकार की बन जाती हैं. जब आपका विचार ज्यादा पावरफुल और सकारात्मक होता हैं तो उसकी स्ट्रिंग्स के बिच का आकर्षण भी ज्यादा पावरफुल होंगा, जिससे उसके अनुरूप ज्यादा स्ट्रिंग्स आकर्षित होंगी और भौतिकता पैदा करेंगी. मतलब की आपके दिमाग से निकला विचार बाहर निकल कर उसको भौतिक स्वरूप देने के लिए सक्षम हैं. आपका विचार एक ऐसा बल हैं जो क्वांटम लेवल पर उसके अनुरूप परिस्थितियों को आकर्षित कर सकता हैं. जो हम कई बार हमारे रोज के जीवन में अनुभव करते हैं.
आपके शरीर के अन्दर की यह स्ट्रिंग्स कम्पित होती हैं. मतलब की आप इस वक़्त कम्पित हो रहे हैं. आपके विचार जिस फ्रीक्वन्सी पर कम्पित होते हैं उसी फ्रीक्वन्सी पर आपका शरीर कम्पित होता हैं. मतलब की पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही कम्पन मौजूद हैं, लेकिन अलग अलग फ्रीक्वन्सी पर. आकर्षण के सिद्धांत के मुताबिक यह बात आप पर निर्भर करती हैं की आप कौन से फ्रीक्वन्सी पर वाइब्रेट हो रहे हैं. आप किस विषय के लिए वाइब्रेट हो रहे हैं? ब्रह्माण्ड हिंदी या अंग्रजी भाषा नहीं समजता हैं. वह केवल कंपन की भाषा समजता हैं. अगर आप हताशा की भावना के साथ कहते हैं की “मुझे बहुत सारे पैसे चाहिए?” ब्रह्माण्ड में यह सन्देश कुछ इस तरह से जाएंगा, “मुझे हताश होने के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए.” और इसका परिणाम बहुत ही बुरा होंगा. तो अपने पैसे ख़ुशी के साथ मांगीए. पूरे ब्रह्माण्ड का अस्तित्व आपसे ही हैं. अगर आप यह प्रश्न करते हैं की ब्रह्माण्ड का अस्तित्व क्यों हैं, इसके लिए जरुरी हैं उसका अस्तित्व परिभाषित करने के लिए किसी प्रेक्षक का अस्तित्व होना. किसी चेतन वस्तु के बिना तो उसके होते हुए भी उसका कोई वजूद नहीं होंगा. चेतना और ब्रह्माण्ड मौलिक रूप से परस्पर हैं. यह दोनों एक साथ न हो तो आप दोनों में से किसी एक को नहीं समज सकते हैं. एक प्रेक्षक ही ब्रह्माण्ड का सर्जन करता हैं. आपकी चेतना ही आपके द्वारा किए गए कार्य के माध्यम से बाहर की दुनिया को प्रभावित करती हैं.
ज्यादा पावरफुल और सकारात्मक विचार ज्यादा बड़ा आकर्षण का क्षेत्र पैदा करते हैं. इस क्षेत्र या बल को आप अपने दिल में महसूस करत सकते हैं. सोचिए जब आप ज्यादा इमोशनल होते हैं या किसी को बहुत ही ज्यादा याद कर के रोते हैं तो आप वह दर्द दिल में महसूस करते हैं. मतलब की हमारा दिल उससे कई ज्यादा रहस्यमयी हैं, जितना हम उसे जानते हैं. महसूस होनेवाली वह फीलिंग या क्षेत्र इतना पावरफुल हैं जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते. केवल आप ही उसके अन्दर के बल, इच्छाओ और फ्रीक्वन्सीओं को महसूस कर सकते हैं. हम माने या ना माने लेकिन हमारा दिल हमारे दिमाग से जुडा हुआ हैं. शायद इसीलिए क्रिस्टोफ़र नोलन ने अपनी फिल्म INTERSTELLAR में LOVE(प्रेम) को सबसे ज्यादा पावरफुल बल दिखाया हैं.
लेकिन, यह सब तो हुई साइंस फ्रिक्शन की बातें. एक सीधी बात तो यह हैं की अगर आप किसी कार्य करते वक़्त नकारात्मक होंगे तो कार्य में सफल नहीं हो पाएंगे, क्योंकि आप अपना पूरा कंसंट्रेशन उसमे नहीं लगा पाएंगे. The Law of Attraction भी यहीं कहता हैं, हमेशां सकारात्मक रहिये. नकारात्मक विचार आपको कमजोर करता हैं इस बात को प्रूव करने की जरुरत नहीं हैं. हम हमेशा यह महसूस करते हैं. विज्ञान इसे सच साबित कर पाए या ना कर पाए, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है की इससे कभी कोई नुकसान नहीं हो सकता हैं. बल्कि इससे दुनिया में सकारात्मकता, प्यार और भाईचारा ही बढ़ता हैं.