अंतरिक्ष के अकेलेआल्बर्ट आइन्सटीन ऐसे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह जाना कि जिस अंतरिक्ष को हम शून्य मानते हैं, वास्तव में वह ऐसा है नहीं, बल्कि उसकी कई विशेषताएं हैं. अंतरिक्ष की प्रकृति अनंत आंतरिक ऊर्जा से भरपूर है. भौतिकशास्त्री रिचर्ड फैनमेन के मुताबिक, ” क्यूबिक मीटर में इतनी ऊर्जा है कि विश्व के सभी महासागर उबल सकें. ” अधिकतम ऊर्जा स्थिर और शांत हैं. बुद्ध इसे “ कल्प “ कहते थे. कल्प किसी सूक्ष्म कणों अथवा तरंगिकाओं की तरह हैं जो प्रति सेकंड खरबों बार उत्पन्न व लुप्त होती हैं. यह किसी स्वलिखित फ़िल्म कैमरे में तेज गति से चलती गतिशील फ़्रेमों की शृंखला द्वारा सातत्य का भ्रम पैदा करने के समान है. यह भ्रम केवल चेतना के रूरी तरह से स्थिर होने पर समझा जा सकता है. क्योंकि यह चेतना ही है जो भ्रम को संचालित करती है.
हमारे ब्रह्माण्ड की आज के समय में जो व्याख्या की जाती हैं वह प्राचीन काल में अलग अलग धर्मो में की गयी व्याख्या से ज्यादा अलग नहीं हैं. अमेरिका के 20वी सदी के महँ वैज्ञानिक निकोला टेस्ला, जिन्होंने प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की खोज की थी, उन्हें प्राचीन वैदिक परंपराओं में ज्यादा रूचि थी. निकोला टेस्ला पूर्वी संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति दोनों के माध्यम से विज्ञान को समजना चाहते थे. अन्य वैज्ञानिको की तरह टेस्लाने ब्रह्माण्ड के रहस्यों को गहरे से देखने के साथ साथ अपने भीतर की गहराई में भी झाँका. किसी योगी की तरह स्वर्गिक अनुभव को वर्णित करते हुए आकाश (Aakasha) शब्द का प्रयोग किया. जो सभी चीजों में व्याप्त हैं. इसके लिए निकोला टेस्लाने भारत के स्वामी विवेकानंद के साथ मिलकर इस विषय का अभ्यास किया. स्वामी विवेक नन्द, जिन्होंने भारत की प्राचीन वैदिक शिक्षा और संस्कृति को पश्चिमी देशों तक पहुँचाया था. वैदिक शिक्षा के अनुसार आकाश खुद शून्य हैं, जिसमे अन्य सारे तत्व भरे हुए हैं. यह तत्व इस शून्य में कम्पित होते हुए उपस्थित रहते हैं. यह एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं. आकाश, अन्तरिक्ष या खाली जगह यिन हैं और इसके अंदर का पदार्थ यांग हैं.
जर्मन लेखक और विद्वान वुल्फगेंग वॉन गोयथे ने कहा की, ” तरंग आदिकालीन तथ्य है जिससे विश्व उत्पन्न हुआ “. सिमेटिक दृश्य ध्वनि का अध्ययन है. सिमेटिक शब्द ग्रीक के मूल शब्द “ साईमा “ से बना हैं, जिसका अर्थ है – तरंग या कंपन. तरंगीय तथ्य का गंभीरता से अध्ययन करने वालों में प्रथम पश्चिमी वैज्ञानिक अर्नस्ट श्लाड्नी थे. वह अठारहवीं शताब्दी का एक जर्मन संगीतज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी था. श्लाड्नी ने खोज की कि धातु की प्लेटों पर रेत फैला कर वायलन गज से जब प्लेटों को डुलाया गया, तो रेत स्वत: प्रतिकृतियों में व्यवस्थित हो गई. उत्पादित कंपन के आधार पर भिन्न–भिन्न ज्यामितिक स्वरूप दृष्टिगोचर हुए. श्लाड्नी ने इन रूपों की समूची तालिका रिकार्ड की, जिन्हें श्लाड्नी आकृतियों के रूप में उल्लिखित किया जाता है. इनमें कई प्रतिकृतियों को समग्र प्राकृतिक विश्व में देखा जा सकता है. जैसे कछुए या तेंदुए की चित्तियों की प्रतिकृतियों के निशान. श्लाड्नी की प्रतिकृतियों या साइमेटिक प्रतिकृतियों का अध्ययन एक गोपनीय विधि है जिसके माध्यम से उन्नत गिटार, वॉयलिन और अन्य वाद्ययंत्रों के निर्माता वाद्ययंत्रों की ध्वनि गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं.
हैंस जेनी ने वर्ष 1960 में श्लाड्नी का कार्य आगे बढ़ाया और ध्वनि नैरंतर्य को विकसित करने के लिए विभिन्न द्रव्य एवं इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धकों का प्रयोग किया एवं `सिमेटिक्स` (तरंग) ध्वनि का सृजन किया. यदि आप जल में सामान्य तरंगों की ओर दौड़ते हैं तो आप जल में प्रतिकृतियां देख सकते हैं. तरंग की आवृत्ति के आधार पर विभिन्न तरंगित प्रतिकृतिया दृष्टिगोचर होंगी. आवृत्ति के बढ़ने पर प्रतिकृति जटिल होती जाएगी. इन स्वरूपों की पुनरावृति होगी, लेकिन ये बेतरतीब नहीं होंगी. जितना अधिक आप इन पर ध्यान केंद्रित करेंगे, उतना ही आपको इस बात का एहसास होगा कि किस प्रकार तरंग पदार्थ को साधारण दुहराव वाले तरंगों से जटिल रूपों में व्यवस्थित करने लगती हैं.
इश्वर और पानी ---
जल एक बहुत ही रहस्यमय द्रव्य है. यह अत्यंत संवेदनशील है. अर्थात्, यह कंपन प्राप्त कर सकता है और उसे रोक कर रख सकता है. अपनी अत्याधिक गुंजायमान क्षमता तथा संवेदनशीलता एवं गूंजने के लिए आंतरिक तत्परता के कारण जल सभी प्रकार की ध्वनि तरंगों के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया देता है. प्रदोलित जल तथा पृथ्वी से अधिकांश पौधों तथा पशुओं के समूह का निर्माण होता है.यह देखना सरल है कि जल में किस प्रकार साधारण प्रदोलन, पहचानने योग्य प्राकृतिक प्रतिकृतियों को सृजित कर सकता है, लेकिन जैसे ही हम उसमें ठोस पदार्थ मिलाते हैं और उसके आयाम को बढ़ा देते हैं तो वस्तुएं और भी दिलचस्प हो जाती हैं. पानी में कार्नस्टार्च (मक्की की मांड) मिलाने से हमें और मिश्रित तत्व हासिल होते हैं. कदाचित जीवन के सिद्धांतों को भी महसूस किया जा सकता है, चूंकि कंपनों से कार्नस्टार्च चलते- फिरते जीव में परिवर्तित हो जाती है.