विज्ञानं news

विज्ञानं के बारे सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

  • Home
  • Business
    • Internet
    • Market
    • Stock
  • Parent Category
    • Child Category 1
      • Sub Child Category 1
      • Sub Child Category 2
      • Sub Child Category 3
    • Child Category 2
    • Child Category 3
    • Child Category 4
  • Featured
  • Health
    • Childcare
    • Doctors
  • Home
  • Business
    • Internet
    • Market
    • Stock
  • Downloads
    • Dvd
    • Games
    • Software
      • Office
  • Parent Category
    • Child Category 1
      • Sub Child Category 1
      • Sub Child Category 2
      • Sub Child Category 3
    • Child Category 2
    • Child Category 3
    • Child Category 4
  • Featured
  • Health
    • Childcare
    • Doctors
  • Uncategorized

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

ईश्वर और यूनिवर्स में समानता -God and the Universe equality

 Irfan point     धेम विज्ञानं   

अंतरिक्ष के अकेलेआल्बर्ट आइन्‍सटीन ऐसे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह जाना कि जिस अंतरिक्ष को हम शून्‍य मानते हैं, वास्तव में वह ऐसा है नहीं, बल्कि उसकी कई विशेषताएं हैं. अंतरिक्ष की प्रकृति अनंत आंतरिक ऊर्जा से भरपूर है. भौतिकशास्त्री रिचर्ड फैनमेन के मुताबिक, ”  क्‍यूबिक मीटर में इतनी ऊर्जा है कि विश्‍व के सभी महासागर उबल सकें. ” अधिकतम ऊर्जा स्थिर और शांत हैं. बुद्ध इसे “ कल्प “ कहते थे. कल्प किसी सूक्ष्‍म कणों अथवा तरंगिकाओं की तरह हैं जो प्रति सेकंड खरबों बार उत्‍पन्‍न व लुप्‍त होती हैं. यह किसी स्वलिखित फ़िल्म कैमरे में तेज गति से चलती गतिशील फ़्रेमों की शृंखला द्वारा सातत्य का भ्रम पैदा करने के समान है. यह भ्रम केवल चेतना के रूरी तरह से स्थिर होने पर समझा जा सकता है. क्योंकि यह चेतना ही है जो भ्रम को संचालित करती है.

ईश्वर और यूनिवर्स में समानता -God and the Universe equality

हमारे ब्रह्माण्ड की आज के समय में जो व्याख्या की जाती हैं वह प्राचीन काल में अलग अलग धर्मो में की गयी व्याख्या से ज्यादा अलग नहीं हैं. अमेरिका के 20वी सदी के महँ वैज्ञानिक निकोला टेस्ला, जिन्होंने प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की खोज की थी, उन्हें प्राचीन वैदिक परंपराओं में ज्यादा रूचि थी. निकोला टेस्ला पूर्वी संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति दोनों के माध्यम से विज्ञान को समजना चाहते थे. अन्य वैज्ञानिको की तरह टेस्लाने ब्रह्माण्ड के रहस्यों को गहरे से देखने के साथ साथ अपने भीतर की गहराई में भी झाँका. किसी योगी की तरह स्वर्गिक अनुभव को वर्णित करते हुए आकाश (Aakasha) शब्द का प्रयोग किया. जो सभी चीजों में व्याप्त हैं. इसके लिए निकोला टेस्लाने भारत के स्वामी विवेकानंद के साथ मिलकर इस विषय का अभ्यास किया. स्वामी विवेक नन्द, जिन्होंने भारत की प्राचीन वैदिक शिक्षा और संस्कृति को पश्चिमी देशों तक पहुँचाया था. वैदिक शिक्षा के अनुसार आकाश खुद शून्य हैं, जिसमे अन्य सारे तत्व भरे हुए हैं. यह तत्व इस शून्य में कम्पित होते हुए उपस्थित रहते हैं. यह एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं. आकाश, अन्तरिक्ष या खाली जगह यिन हैं और इसके अंदर का पदार्थ यांग हैं.

जर्मन लेखक और विद्वान वुल्‍फगेंग वॉन गोयथे ने कहा की, ” तरंग आदिकालीन तथ्‍य है जिससे विश्‍व उत्पन्न हुआ “. सिमेटिक दृश्‍य ध्‍वनि का अध्‍ययन है. सिमेटिक शब्‍द ग्रीक के मूल शब्‍द “ साईमा “ से बना हैं, जिसका अर्थ है – तरंग या कंपन. तरंगीय तथ्य का गंभीरता से अध्‍ययन करने वालों में प्रथम पश्चिमी वैज्ञानिक अर्नस्‍ट श्लाड्नी थे. वह अठारहवीं शताब्‍दी का एक जर्मन संगीतज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी था. श्लाड्नी ने खोज की कि धातु की प्‍लेटों पर रेत फैला कर वायलन गज से जब प्‍लेटों को डुलाया गया, तो रेत स्‍वत: प्रतिकृतियों में व्‍यवस्थित हो गई. उत्‍पादित कंपन के आधार पर भिन्‍न–भिन्‍न ज्‍यामितिक स्वरूप दृष्टिगोचर हुए. श्लाड्नी ने इन रूपों की समूची तालिका रिकार्ड की, जिन्‍हें श्लाड्नी आकृतियों के रूप में उल्लिखित किया जाता है. इनमें कई प्रतिकृतियों को समग्र प्राकृतिक विश्‍व में देखा जा सकता है. जैसे कछुए या तेंदुए की चित्तियों की प्रतिकृतियों के निशान. श्लाड्नी की प्रतिकृतियों या साइमेटिक प्रतिकृतियों का अध्‍ययन एक गोपनीय विधि है जिसके माध्यम से उन्नत गिटार, वॉयलिन और अन्‍य वाद्ययंत्रों के निर्माता वाद्ययंत्रों की ध्‍वनि गुणवत्‍ता का निर्धारण करते हैं.

हैंस जेनी ने वर्ष 1960 में श्लाड्नी का कार्य आगे बढ़ाया और ध्‍वनि नैरंतर्य को विकसित करने के लिए विभिन्‍न द्रव्य एवं इलेक्‍ट्रॉनिक प्रवर्धकों का प्रयोग किया एवं `सिमेटिक्‍स` (तरंग) ध्‍वनि का सृजन किया. यदि आप जल में सामान्‍य तरंगों की ओर दौड़ते हैं तो आप जल में प्रतिकृतियां देख सकते हैं. तरंग की आवृत्ति के आधार पर विभिन्‍न तरंगित प्रतिकृतिया दृष्टिगोचर होंगी. आवृत्ति के बढ़ने पर प्रतिकृति जटिल होती जाएगी. इन स्वरूपों की पुनरावृति होगी, लेकिन ये बेतरतीब नहीं होंगी. जितना अधिक आप इन पर ध्यान केंद्रित करेंगे, उतना ही आपको इस बात का एहसास होगा कि किस प्रकार तरंग पदार्थ को साधारण दुहराव वाले तरंगों से जटिल रूपों में व्‍यवस्‍थित करने लगती हैं.

इश्वर और पानी ---

जल एक बहुत ही रहस्यमय द्रव्य है. यह अत्‍यंत संवेदनशील है. अर्थात्, यह कंपन प्राप्‍त कर सकता है और उसे रोक कर रख सकता है. अपनी अत्‍याधिक गुंजायमान क्षमता तथा संवेदनशीलता एवं गूंजने के लिए आंतरिक तत्‍परता के कारण जल सभी प्रकार की ध्‍वनि तरंगों के प्रति तत्‍काल प्रतिक्रिया देता है. प्रदोलित जल तथा पृथ्‍वी से अधिकांश पौधों तथा पशुओं के समूह का निर्माण होता है.

यह देखना सरल है कि जल में किस प्रकार साधारण प्रदोलन, पहचानने योग्‍य प्राकृतिक प्रतिकृतियों को सृजित कर सकता है, लेकिन जैसे ही हम उसमें ठोस पदार्थ मिलाते हैं और उसके आयाम को बढ़ा देते हैं तो वस्‍तुएं और भी दिलचस्‍प हो जाती हैं. पानी में कार्नस्‍टार्च (मक्‍की की मांड) मिलाने से हमें और मिश्रित तत्‍व हासिल होते हैं. कदाचित जीवन के सिद्धांतों को भी महसूस किया जा सकता है, चूंकि कंपनों से कार्नस्‍टार्च चलते- फि‍रते जीव में परिवर्तित हो जाती है.

यहूदी रहस्यवाद में इश्वर --

कबाला या यहूदी रहस्‍यवाद में ईश्‍वर के दिव्‍य नाम का उल्‍लेख है. वह नाम जिसे उच्‍चारित नहीं किया जा सकता. इसे इसलिए नहीं बोला जा सकता, क्यूंकि यह ऐसा कंपन है जो सर्वत्र है. यह सभी शब्‍दों और सभी पदार्थों में हैं. पवित्र शब्‍द ही सब कुछ है. चतुष्‍फलक सर्वाधिक सामान्य आकार है, जो तीन आयामों में अस्तित्‍व में है. कुछ में भौतिक वास्‍तविकता के लिए कम से कम चार बिंदु होने चाहिए. त्रिकोणीय संरचना प्रकृति की केवल स्‍वनिर्धारित प्रतिकृति है. पूर्व-विधान में शब्‍द `चतुर्वर्णी` ईश्‍वर के कुछेक प्रकटीकरण के लिए प्राय: प्रयुक्‍त किया जाता है. इसे तब प्रयोग किया गया था, जब ईश्‍वर के शब्‍द या ईश्‍वर, लोगो या प्रारंभिक शब्‍द के विशेष नाम से बात की गई थी. प्राचीन सभ्‍यता जानती है कि ब्रह्माण्‍ड की आधारभूत संरचना चतुष्फलक आकार की थी. इस आकार में प्रकृति साम्‍य, शिव के लिए आधारभूत प्रमाण प्रदर्शित करती है. हालांकि इसमें परिवर्तन के लिए आधारभूत प्रमाणशक्ति भी है.

बाइबल में जॉन सिद्धांत---

 में सामान्‍यतया`आरंभ पाठ में प्रयुक्‍त शब्‍द `लोगो` था. ईसा पूर्व लगभग 500वें वर्ष में विद्यमान ग्रीक दार्शनिक हरक्‍लीटस ने `लोगो` का उल्‍लेख कुछ आधारभूत अज्ञात के रूप में किया. सभी पुनरावृति, पद्धति और स्वरूपों का उद्भव. हरक्‍लीटस के उपदेशों का अनुसरण करने वाले निर्लिप्त दार्शनिकों ने ब्रह्माण्‍ड में व्‍याप्‍त दिव्‍य जीवंत सिद्धांत के साथ इस शब्‍द का पता लगाया. सूफीवाद में `लोगो` सर्वत्र है और सभी वस्‍तुओं में है. यह वह तत्व है जिसमें अव्‍यक्‍त, व्‍यक्‍त हो जाता है.

हिन्दू परम्परा में----

 शिव नटराज का शाब्दिक अर्थ है `नृत्‍य सम्राट`. संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड शिव की धुन पर नृत्‍य करता है. सभी कुछ स्‍पंदन से ही ओतप्रोत होता है. केवल जब तक शिव नृत्‍य कर रहे हैं तभी तक संसार विकसित और परिवर्तित हो सकता है, अन्‍यथा सब कुछ समाप्‍त होकर शून्‍य हो जाएगा. यद्यपि शिव हमारी चेतना का साक्ष्‍य है, शक्ति संसार का सार है. यद्यपि शिव ध्‍यानमग्न हैं, शक्ति उन्‍हें संचालित करने का प्रयत्‍न करती है, जिससे उन्‍हें नृत्‍य में उतारा जा सके. यिन एवं यांग की तरह नर्तक तथा नृत्‍य का अस्तित्‍व एक है. `लोगो़` का अर्थ है अनावृत सत्‍य. जो `लोगो़` को जानता है, वही सत्‍य को जानता है. छिपाव की कई परतें आकाश के रूप में मानवीय संसार में अस्तित्‍व में हैं, जिससे स्‍वयं के स्रोत को छिपाते हुए वह जटिल संरचनाओं के भंवर में फंस जाता है. लुकाछिपी के दिव्‍य खेल की तरह हम हजारों वर्षों से छिपते चले आ रहे हैं और खेल को पूरी तरह से भूल गए हैं. हम भूल गए हैं कि कोई ऐसी चीज है जिसकी खोज की जानी है.

बौद्ध धर्म में--

 प्रत्‍येक को अपने `लोगो़` को सीधे महसूस करना, अर्थात् ध्‍यान के माध्‍यम से अपने भीतर परिवर्तन या नश्‍वरता के क्षेत्र का पता लगाना सिखाया जाता है. जब आप अपना आंतरिक संसार देखते हैं तो आप सूक्ष्‍म संवेदनाओं और ऊर्जा को देखते हैं और मस्तिष्‍क अधिकाधिक कुशाग्र व आत्‍मकेन्द्रित होने लगता है. `अणिका` के प्रत्‍यक्ष अनुभव या संवेदन के आधारभूत स्‍तर पर नश्‍वरता के माध्‍यम से व्‍यक्ति मोह से मुक्‍त हो जाता है. एक बार हम अनुभव कर लेते हैं कि एक ही क्षेत्र है जो सभी धर्मों का सामान्‍य रास्‍ता है, तो हम किस प्रकार कह सकते हैं `मेरा धर्म` या `यह मेरा मौलिक ओम् है`, `मेरा क्‍वाण्‍टम क्षेत्र है`? हमारे संसार में वास्‍तविक संकट सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक नहीं हैं. हमारे संकट चेतना के संकट हैं, अपने वास्‍तविक स्‍वरूप को प्रत्‍यक्ष अनुभव कर पाने की असमर्थता. प्रत्‍येक वस्‍तु और प्रत्‍येक व्‍यक्ति में इस प्रकृति को पहचानने की असमर्थता. बौद्ध परंपरा में, `बोधिसत्व` जागृत बुद्ध प्रकृति का व्‍यक्ति है. ब्रह्माण्‍ड में बोधिसत्व हर प्राणी को जागृत करने में सहायता करता है, यह अनुभव करते हुए कि चेतना केवल एक ही है. किसी के वास्‍तविक स्‍वरूप को जागृत करने के लिए व्‍यक्ति को सभी को जागृत करना चाहिए.
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करें
नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुख्यपृष्ठ
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
सदस्यता प्राप्त करे

हमारे नये पोस्ट ईमेल से प्राप्त करे ,यहाँ अपना ईमेल लिख कर


निचे

कुल पेज दृश्य

Sparkline

जो आपको चाहिए यहाँ खोज करे

Copyright © विज्ञानं news | Powered by Blogger
Design by Hardeep Asrani | Blogger Theme by NewBloggerThemes.com | Distributed By Gooyaabi Templates